Aakalan kya hai, आकलन (Assessment) का अर्थ, उद्देश्य, प्रकार

Aakalan kya hai | आकलन किसे कहते हैं?

Aakalan kya hai: Assessment (आकलन) हम सभी के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्‍सा होता है। कभी हम अपने जीवन के बारे में आकलन करते है, तो कभी हम अपने जीवन में किए कुछ कामों का आकलन करते हैं। ताकि हमें पता चल सके कि हम उस काम को करने में कितने सफल हुए हैं और कितने असफल। साथ ही आकलन से ही पता चलता है कि हमें किसी काम को आगे किस तरह से करना है। ताकि उसके और बेहतर नतीजे आ सकें।

ऐेसे में यदि आप आकलन के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारे इस लेख को अंत तक पढि़ए। अपने इस लेख में हम आपको बताएंगे कि Aaklan kise kahate Hain साथ ही आकलन कितने प्रकार का होता और आप कैसे किसी भी चीज का एक बेहतर आकलन कर सकते हो। तो चलिए जानते है कि आकलन किसे कहते हैं, Aakalan kya hai…

इस लेख में आप जानेंगे

  • आकलन किसे कहते हैं
  • Aakalan kya hai, आकलन की परिभाषा
  • आकलन का मुख्य उद्देश्य क्या है
  • aakalan ka mukhya uddeshy kya hai
  • assessment of learning in hindi
  • आकलन के प्रकार
  • आकलन और मूल्यांकन में अंतर

आकलन किसे कहते हैं?, Aakalan kya hai

Assessment एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हम सभी के पास बहुत सारी सूचनाएं एकत्रित होती हैं। जिसमें सबसे पहले हमें उन सभी सूचनाओ को क्रमवार लगाना होता है। इसके बाद उसे पूरी तरह से समझना होता है कि कहां हमें बेहतर नतीजे मिले और कहां नजीतों में कमी देखने को मिली। इसे हमें तथ्‍यों को आधार मानकर ही देखना होता है।

Aaklan kise kahate Hain आइए इसे एक उदाहरण के जरिए हम समझते हैं। मान लीजिए किसी कक्षा में 50 विधार्थी पढ़ते हैं साथ ही उस कक्षा को पिछले पांच साल से एक ही अध्‍यापक पढ़ा रहा है। अब वो जानना चाहता है किे पिछले पांच साल में उसी कक्षा में नतीजों में कितना सुधार आया।

इसके लिए वो पिछले पांच साल के सभी बच्‍चों के नतीजे अपने सामने रखेगा और आकलन के जरिए देख सकता है। कि किस साल किस विषय में उसके सबसे ज्‍यादा विधार्थी फेल हुए है और किस वर्ष उसके बच्‍चों का नतीजा शत् प्रतिशत् रहा है। आजकल आकलन करने के काम में कंम्‍प्‍यूटर का प्रयोग किया जाता है। जिससे नतीजे भी सटीक और काम भी जल्‍दी हो जाता है।

आकलन का मुख्य उद्देश्य क्या है?

वैसे तो आकलन (Assessment) के बहुत सारे उद्देश्‍य होते हैं। क्‍योंकि आकलन हर कोई अपने हिसाब से अैर अलग अलग ढंग से करता है। लेकिन यहां हम आपको आकलन के कुछ प्रमुख उद्देश्‍यों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

आकलन का मुख्य उद्देश्य क्या है

  • आकलन के द्वारा हम लोग किसी भी चीज की प्रगति रिपोर्ट जान सकते हैं। वो भी तथ्‍यों के आधार पर। जिसमें गलती होने की संभावना ना के बराबर होती है।
  • किसी भी काम को निरंतर गति देने के लिए उसका आकलन बेहद जरूरी है। क्‍योंकि किसी भी काम को गति तभी दी जा सकती हैं, जब हमें उसकी वर्तमान गति का पता हो। जिसे हम आकलन के जरिए जान सकते हैं।
  • Assessment के द्वारा ही पता चलता है कि आपने जो काम किया है, उसके पीछे जितनी मेहनत लगाई है। क्‍या वाकई उसके नतीजे उसी अनुसार प्राप्त हुए हैं। यदि नहीं तो आप उस पर चितंन और मनन कर सकते हैं।
  • आकलन का उद्देश्‍य एक ये भी रहता है कि आने वाले समय में काम और उसकी गुणवत्‍ता को कैसे और प्रभावशाली बनाया जा सके। आकलन के जरिए हम उसे भी जान सकें।

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आकलन के प्रकार

जैसा कि आपने ऊपर जाना कि आकलन का मुख्य उद्देश्य क्या है। ठीक उसी तरह से आकलन के प्रकार भी कई प्रकार के होते हैं। आइए अब हम आपको आकलन के प्रकार के बारे में जानकारी देते हैं।

आकलन के प्रकार

प्री असेसमेंट आकलन

यह Assessment का सबसे पहला प्रकार हें। इसके अंतर्गत जब कोई बच्‍चा किसी स्‍कूल में पढ़ने जाता है तो सबसे पहले उसका आकलन किया जाता है। इसमें जब वो स्‍कूल में दाखिला लेने जाता है तो उससे कुछ सवाल पूछे जाते हैं और उसका पिछले साल का रिपोर्ट कार्ड देखकर अंदाजा लगाया जाता है। इसी तरह से एक एक करके पूरी कक्षा के बच्‍चों का आकलन किया जाता है। इसके बाद उनके लिए पूरे साल की एक विस्‍तृत कार्य येाजना तैयार की जाती है। जिससे वो साल के अंत में बेहतर नतीजे ला सकें। इस कार्ययोजना पर सभी अध्‍यापकों केा पूरे साल काम करना होता है। इसके बाद अगले साल फिर से देखा जाता है कि योजना कितनी कारगर हुई।

रचनात्‍मक आकलन

रचनात्मक आकलन का प्रयोग अध्‍यापक अपनी कक्षा में बच्‍चों को सिखाने और समझाने के लिए हर रोज करते हैं। इसके तहत वो जब भी किसी अध्‍याय को पढ़ा रहे होते हैं तो बीच बीच में वो बच्‍चों से जानकारी लेते हैं। जिसमें बच्‍चों को अपने साथ वही लाइन दोरहराने को कहना या बीच बीच में किसी बच्‍चे को खड़ा करके अपनी बात को दोबारा से पूछना।

इसकी खास बात ये रहती है किे इसके तरह से इसके नतीजे भी तुरंत आ जाते हैं और उसमे अध्‍यापक सुधार भी उसी दौरान कर लेता है। कई बार इस आकलन में बच्‍चे खुद भी सुझाव दे देते हैं कि वो किस तरह से अच्‍छे से समझ सकते हैं। लेकिन यह आकलन केवल अनुमान पर आधारित होता है। जिसमें हर रोज कुछ बदलाव किए जा सकते हैं।

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योगात्‍मक आकलन

योगात्‍मक आकलन किसी भी अध्‍यापक और छात्र के लिए बेहद ही महत्‍वपूर्ण माना जाता है। इसके तहत साल के अंत में उसने पूरे साल जितनी भी मेहनत की है। उसका आकलन किया जाता है। इसके बाद उसके नतीजे जारी किए जाते हैं। इसके तहत उसे अंक या ग्रेडिंग दी जाती है। जिससे वह खुद को जान पाता है। आकलन का यह तरीका पूरी दूनिया में सर्वमान्‍य है। साथ ही जब भी हम आगे कहीं पढ़ने या नौकरी के लिए जाते हैं तो इसी आकलन को सबसे ज्‍यादा वरीयता दी जाती है।

पुष्टिकारक आकलन

जैसा कि नाम से ही स्‍पष्‍ट है कि यह किसी काम की पुष्टि करने के लिए किया जाता है। इसके तहत यह जाना जाता है कि सालभर जिन योजनाओं पर अध्‍यापक द्वारा काम किया वो निर्णायक सिद्ध हुई या नहीं। हम जिन लक्ष्‍यों को लेकर चले थे क्‍या वाकई हमने उन्‍हें साल के अंत में छू लिया है। इसी के आधार पर फिर हम आगे की योजना बनाने का काम करते हैं। यदि उनमें कमी रह गई तो उससे जानने और समझने की केाशिश करते हैं। ताकि अगली योजना में हमसे दोबार से वही चूक ना हो।

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मानक संदर्भित आकलन

आज के समय में इस आकलन का महत्‍व बेहद ज्‍यादा हो गया है। इसके तहत कोई भी अध्‍यापक अपने बच्‍चों का आकलन करने के लिए या तो मानक तय कर देता है। या वो अपने राज्‍य या राष्‍ट्रीय आधार पर अपने बच्‍चों का आकलन करता है।

जिससे यह जानने में मदद मिलती है कि आपका स्‍कूल या आपके बच्‍चे किसी राज्‍य में या जिले में किस स्‍थान पर हैं। एक तरह से इसे तुलनात्‍मक अध्‍यन्न भी कहा जा सकता है। लेकिन कई बार ये भी देखा गया है कि इस तरह क आकलन से हम अपने नैतिक मूल्‍यों को छोड़़कर केवल आकलन में सुधार पर ही जोर देने लगते हैं।

आकलन और मूल्‍यांकन में अंतर?

Aaklan kise kahate Hain इसके बारे में आपने ऊपर जाना कि यह एक तथ्‍यों पर आधारित प्रक्रिया होती है। इसका प्रयोग हम लोग किसी विशेष योजना को आधार बनकर ही करते हैं। जबकि मूल्‍यांकन इससे थोड़ा अलग होता है। लेकिन मूल्‍यांकन हम लोग कई बार आकलन का प्रयोग भी करते हैं।

आकलन के बाद हम लोग मूल्यांकन की और चलते हैं। खास बात ये है कि आकलन हम लोग कंम्‍प्‍यूटर पर भी कर सकते हैं। लेनिक मूल्‍यांकन हमेशा इंसान के द्वारा ही किया जा सकता है।

आइए हम मूल्‍यांकन को एक उदारहरण के जरिए समझते हैं। मान लीजिए आपकी कक्षा मे एक छात्र है और अब उसके माता पिता जानना चाहते हैं कि उनका बच्‍चा कक्षा में किस स्‍थान पर है।

इसके जवाव के लिए उसका अध्‍यापक कक्षा के सभी बच्‍चों के रिजल्‍ट निकालेगा और उसमें उस बच्‍चे का स्‍थान देखेगा जो कि जिसके माता पिता ने अपने बच्‍चे के बारे में जानना चाहा है। अब आकलन से उसकी विषयवार रैंक निकलकर आ जाएगी। वो अध्‍यापक इसे उसके माता पिता को दे सकता है। जिससे पता चल जाएगा कि उनका बच्‍चा कक्षा में किस स्‍थान पर है।

लेकिन यदि अब वही माता पिता उस अध्‍यापक को कह देते हैं कि उनके बच्‍चे का मूल्‍यांकन भी कीजिए। इसके बाद वो अध्‍यापक देखेगा कि जब वो बच्‍चा उनके स्‍कूल में आया था तो किस स्‍थान पर था और वर्तमान में उसकी क्‍या स्‍थिति है।

इसके बाद वो समझने की कोशिश करेगा कि इस बीच यदि उसकी स्‍थिति में सुधार हुआ है तो इसके पीछे प्रमुख कारण क्‍या रहे हैं। जिसमें उसकी हाजिरी, उसके क्‍लास टेस्‍ट के नंबर और उसकी रंगत संगत जैसे विषय भी देखने की जरूरत पड़ेगी।

इससे तय किया जाएगा कि उसके नतीजों में जो बदलाव देखने को मिला है वो किस कारण मिला है। इन्‍हीं बातों को आधार बनाते हुए समझा जाएगा कि आगे उसके अंदर और किस तरह के सुधार किए जा सकता है।

इस तरह से आप समझ सकते हैं कि मूल्‍यांकन तो केवल आंकड़ों का एक खेल है, परन्‍तु मूल्‍यांकन आंकड़ों और दिमाग के सहारे ही किया जा सकता है। मूल्‍यांकन के लिए उस क्षेत्र में उस व्‍यक्ति का कोई विशेष अनुभव होना बेहद जरूरी है, जबकि आकलन आंकड़ों के आधार पर कोई भी कर सकता है।

साथ ही मूल्‍यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कुछ हद तक अनुमान भी लगाना पड़ता है। ठीक उसी तरह जैसे एक अध्‍यापक अपने बच्‍चे की क्‍लास टेस्‍ट की कॉपी चेक करता है। जिसमें सभी के उत्‍तर अलग, तरीका और लिखावट अलग होती है। परन्‍तु वो इसके बाद भी तय कर लेता है कि किसने सबसे सटीक उत्‍तर लिखा है। जबकि यहां यदि चार विकल्‍प वाले प्रश्‍न उत्‍तर होते तो इसकी जांच कंम्‍प्‍यूटर के जरिए भी की जा सकती है। आशा है कि अब आप समझ गए होंगे कि Aaklan kise kahate hain

आकलन के दौरान ध्‍यान रखने योग्य बातें

  • आकलन कभी भी किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर नहीं करना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि आपके विचार निष्‍पक्ष हों।
  • आकलन के दौरान हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि सैंपल बड़ा और हर वर्ग का शामिल हो। ताकि आकलन सही हो सके।
  • आकलन में हमेशा सुधार की गुंजाइश रहती है। इसलिए सुधार करने में कभी भी कतराना नहीं चाहिए।
  • यदि आकलन बड़ा है, तो उसका विवरण एक ग्राफ या चार्ट बनाकर आपको देना चाहिए। ताकि उसे पढ़ने और समझने में समय भी बचे और आसानी भी रहे।
  • आकलन करने से पहले जरूरी है कि आप जिस विषय पर आकलन करने जा रहे हैं। उससे जुड़े पहले जो भी आकलन हो चुके हों उसके बारे में पढ़ लें या जानकारी जुटा लें। इससे आपको आकलन करने में आसानी रहेगी।

आपने सीखा

आज आपने सीखा कि Aakalan kya hai, आकलन का मुख्य उद्देश्य क्या है? आकलन के प्रकार और आकलन और मूल्‍यांकन में अंतर क्या है। अगर जानकारी पसंद आयी तो आप इसे अपने दोस्तों तक भी पहुंचाएं।

नमस्कार दोस्तों, मैं रवि "आल इन हिन्दी" का Founder हूँ. मैं एक Economics Graduate हूँ। कहते है ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता कुछ इसी सोच के साथ मै अपना सारा ज्ञान "आल इन हिन्दी" द्वारा आपके साथ बाँट रहा हूँ। और कोशिश कर रहा हूँ कि आपको भी इससे सही और सटीक ज्ञान प्राप्त हो सकें।

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