भारत के संविधान में मानव के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा गया है। लोगों से जुड़े क्या अधिकार होने चाहिए और उनका संरक्षण किस प्रकार से किया जा सकता है। संविधान निर्माताओं ने संविधान बनाने के दौरान इस बात को हमेशा ध्यान में रखा था। ताकि जब संविधान बन कर तैयार हो जाए तो किसी को अपने अधिकार से वंचित ना रखा जा सके। संविधान की इसी सोच को आगे बढ़ाने का काम हमारे देश में बना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) करने का काम करता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग लोगों के अधिकार दिलाने का काम तो करता ही है, साथ ही कई बार गंभीर मुद्दों पर स्वत: भी संज्ञान लेकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने का काम करता है। आइए आज हम अपनी इस पोस्ट में आपको मानवाधिकार आयोग के बारे में जानकारी देते हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission) एक तरह से हमारे संविधान में हमें दिए गए स्वतंत्रता का अधिकार, जीवन का अधिकार, समानता के अधिकार के पहरी के रूप में काम करने वाला माना जाता है। इसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्टूबर 1993 को की गई थी।
इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। साल 2018 में इसने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर लिए थे। हर साल 10 दिसंबर को राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘मानवाधिकरों की सार्वभौम घोषणा’ के एतिहासिक दस्तावेज को पेरिस में अपनाया था। माना जाता है कि पहली बार मानवाधिकारों के संरक्षण की बात यहीं से उठी थी।
- मानवाधिकार आयोग में कुल 7 सदस्य होते हैं और इन सभी के ऊपर एक अध्यक्ष होता है। जो कि आयोग के किसी भी फैसले में अहम भूमिका निभाता है।
- मानवाधिकार आयोग (NHRC) के सदस्यों की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
- मानवाधिकार आयोग के सदस्यों का कार्यकाल पांच वर्ष या उनकी आयु 70 वर्ष होने तक रहता है। इनमें से जो भी पहले पूरी हो जाए उसी के आधार पर उनका कार्यकाल समाप्त होता है।
- मानवाधिकार आयोग के सदस्यों को तभी सदस्य या अध्यक्ष के पद से हटाया जा सकता है जब सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इनको किसी मामले में दोषी करार दिया जाए या इन पर आरोप सिद्ध हो जाएं।
- मानवाधिकार आयोग के की तर्ज पर राज्य मानवाधिकार आयोग भी होता है। जिसमें सदस्यों की नियुक्ति मुख्यमंत्री, गृह मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की सलाह पर राज्यपाल के द्वारा की जाती है।
- मानवाधिकार आयोग (NHRC) एक स्वतंत्र आयोग है। ऐसे में इसके पास जब भी देश के किसी हिस्से से किसी तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी कोई शिकायत प्राप्त होती है तो उस पर ये पूरी तरह से जांच कर सकता है। चाहे वो देश के किसी भी राज्य से जुड़ा किसी भी तरह के मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला क्यों ना हो।
- मानवाधिकार आयोग के पास उन मामलों में भी जांच करने की शक्ति प्रदान है जो कि शिकायत के दौरान देश की किसी अदालत में विचाराधीन हैं।
- आयोग के सदस्य को यदि संशय होता है कि किसी जेल में कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है तो वो लोग उस जेल का दौरा भी कर सकते हैं और यदि उन्हें राज्य या केंद्र सरकार को कियी तरह के सुझाव देने की जरूरत लगती है, तो वो भी दे सकते हैं। खास बात ये है कि सरकार आयोग के सुझावों पर अमल भी करती है।
- मानवाधिकार आयोग संविधान में प्राप्त हमारे अधिकारों या सरकार के किसी कानून की समीक्षा भी कर सकता है और यदि उसमें किसी तरह के बदलाव करने की जरूरत महसूस की जाती है तो उस बारे में सरकार को सुझाव भी दे सकता है।
- मानवाधिकार आयोग समय समय पर लोगों के अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर बैठक भी करता रहता है कि लोगों के जीवन और उनके अधिकारों को कैसे और बेहतर बनाया जा सकता है।
- मानवाधिकार आयोग और इसके सदस्य समय समय पर कार्यक्रम, सेमीनार आदि करते रहते हैं। ताकि लोगों में उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता आ सके और वो अपने अधिकारों के प्रति और ज्यादा सजग हो सके।
- आयोग के पास दीवानी अदालत से जुड़े मामलों में भी शक्तियां प्राप्त हैं। इसलिए आयोग ऐसे मामलों में राहत भी दे सकता है।
- आयोग के महत्व और लोगों के भरोसे पर कितना खरा उतरता है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके पास देश के तमाम हिस्सों से हर साल काफी मात्रा में शिकायतें प्राप्त होती हैं।
- आयोग हर साल अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति को सौपता है। जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।
Must Read:
- आयोग के पास किसी विशेष मामले में जांच के लिए कोई विशेष टीम नहीं है इसलिए ज्यादातर मामलों में ये आयोग केंद्र सरकार या राज्य सरकार को ही संबधित मामले में जांच के लिए आदेश देता है।
- मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास किसी भी मामले में केवल मात्र सिफारिश करने का ही अधिकार है। ये अपने स्तर पर किसी भी निर्णय को लागू करने में सक्षम नहीं है। साथ ही सरकार भी इसकी किसी सिफारिश को लागू करने के लिए बाध्यकारी नहीं है। इसलिए देखा ये भी गया है कि सरकार या तो इसकी सिफारिश को पूरी तरह से खारिज कर देती है या आंशिक रूप से ही लागू किया जाता है।
- कई बार देखा ये भी गया है कि जब इसके पास बहुत बड़ी मात्रा में शिकायतें आ जाती हैं तो धन के अभाव में इसकी गति काफी धीमी हो जाती है। जिससे शिकायतों के निपटान में फर्क पड़ता है और लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है।
- मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास ये अधिकार नहीं है कि वो केंद्र सरकार से किसी भी प्रकार की सूचना मांग सके। जिससे एक तरह से कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले विभागों में इसके हाथ काफी हद तक सीमित हैं। जो कि इस आयोग की सबसे बड़ी कमजोरी मानी जाती है।
Conclusion
आशा करता हूँ कि अब आप राष्ट्रीय मानवाधिकार के बारें में जान चुकें होंगे। जानकारी कितनी उपयोगी लगी आप हमें कमेंट में बता सकते है।