सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई | Supreme Court क्‍या है?

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई | सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना कब हुई

Supreme court ki sthapna kab hui अगर आपको यह नहीं पता या आप ये जानना चाहते है कि सुप्रीम कोर्ट क्‍या है? सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख शक्तियां क्या है और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंतर है तो इस लेख को अंत तक पढ़ें। इस लेख के अंत में आपको सुप्रीम कोर्ट के बारे में समस्त जानकारी प्राप्त हो जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट का हमारे देश में सभी लोग सम्मान करते हैं। यही वजह है कि आज भी सुप्रीम कोर्ट के हर फैसले का हमारे देश में एक अलग महत्‍व होता है। उसकी हमेशा देश में चर्चा होती है। लेकिन यदि आप अभी तक नहीं जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट क्‍या है? सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई या उसके कार्य क्षेत्र और शाक्‍तियां कितनी होती है? तो हमारे इस लेख को अंत तक पढि़ए। अपने इस लेख में हम आपको बताएं कि सुप्रीम कोर्ट क्‍या होता है।

सुप्रीम कोर्ट क्‍या है?

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई यह जानने से पहले चलिए एक नजर इस बात पर डालते है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट क्‍या है?

हमारे देश में सबसे पहले विधानपालिका है फिर कार्यपालिका है और फिर इसके बाद तीसरे नंबर पर आती है न्‍यायपालिका यानि सुप्रीम कार्ट। सुप्रीम कोर्ट की खास बात ये है कि ये पूरी तरह से स्‍वतंत्र है। किसी भी तरह से सरकार का या सिस्‍टम का इसके अंदर हस्‍तक्षेप नहीं है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट कभी किसी के दबाव में नहीं आता है। संविधान के अनुच्‍छेद 24 में कहा गया है कि भारत में एक सवौच्‍च न्‍यायालय होना चाहिए। जिसके आधार पर सुप्रीम कार्ट की स्‍थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी।

सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई

सुप्रीम कार्ट की स्‍थापना 26 जनवरी 1950 को की गई थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 28 जनवरी 1950 को अपना कार्य करना शुरू किया था। हालांकि उस दौरान सुप्रीम कोर्ट में केवल 7 न्‍यायधीश हुआ करते थे, जो कि आज बढ़कर 33+1 (Chief Justice Of India) हो चुकी है। ऐेसा इसलिए किया गया ताकि न्‍याय मिलने में देरी ना हो। क्‍योंकि हर आदमी सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकता है। इसलिए हमारे देश में जिला स्‍तर और फिर राज्‍य स्‍तर और फिर केंद्र में सुप्रीम कोर्ट बनाया गया है। ताकि सभी को न्‍याय जल्‍दी और आसानी से मिल सके।

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सुप्रीम कार्ट में मुख्‍य न्‍यायधीश बनने की योग्‍यता

  • वह भारत का नागर‍िक हो।
  • वह पांच साल तक किसी हाई कोर्ट में काम कर चुका हो।
  • वह किसी उच्‍च न्‍यायालय मे 10 साल तक अधिवक्‍ता रह चुका हो।
  • राष्‍ट्र‍पति की नजर में वह इस पद के लिए एक कुशल व्‍यक्ति हो।
  • इस पद के लिए कोई भी न्‍यूनतम आयु सीमा नहीं बताई गई है। परन्‍तु अधिकतम 65 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। क्‍योंकि यह Retirement की आयु है।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंतर

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंतर

बहुत से लोग अक्‍सर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अंतर नहीं समझ पाते हैं। उन्‍हें लगता है किे ये दोनों एक ही संस्‍था हैं। लेकिन वास्‍तव में ऐसा नहीं हैं। हाईकोर्ट किसी भी राज्‍य की सर्वोच्‍च अदालत होती है। जबकि सुप्रीम कोर्ट पूरे देश के लिए काम करता है। इसके अलावा यदि कोई भी इंसान हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्‍ट नहीं है तो वह सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आगे कहीं नहीं चुनौती दी जा सकती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट से किसी भी इंसान को दिए गए दंड या सजा को केवल राष्‍ट्पति कम कर सकता है। लेकिन ऐसा बहुत कम मामलो में होता है। जब राष्‍ट्रपति किसी की सजा को कम करे।

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सुप्रीम कोर्ट का महत्‍व

वैसे तो हमारे देश के लिए सुप्रीम कोर्ट का महत्‍व बयां नहीं किया जा सकता है। लेकिन फिर भी हम यहां आपको बिंदुवार कुछ महत्‍व बताने जा रहे हैं। जो कि आपकी जानकारी के लिए तो महत्‍वपूर्ण हैं ही साथ ही कई बार ये चीजें प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूछी जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट की स्थापना कब हुई यह जानने के बाद चलिए अब जानते है कि सुप्रीम कोर्ट का क्या महत्‍व है।

  • सुप्रीम कोर्ट हमारे देश की वो अंतिम अदालत है जहां किसी भी मामले को चुनौती दी जा सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला हो वो हम सभी को मानना होगा। इसके बाद केवल सुप्रीम कोर्ट के अंदर पुर्नविचार याचिका दायर की जा सकती है। जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर दोबारा से विचार करता है।
  • भारत के हर नागरिक का यह अधिकार है कि यदि किसी तरह से उसके मौलिक अधिकार का उल्‍लंघन होता है तो वह इसके लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट भी इस पर तुरंत संज्ञान लेगा। क्‍योंकिे मौलिक अधिकार हमें स‍ंविधान की तरफ से दिए गए हैं।
  • सुप्रीम कोर्ट के पास वो शक्ति है जिसकी मदद से यदि भारत सरकार किसी तरह का कानून या नियम आदि बनाती है और वो संविधान या नागरिकों के लिए किसी तरह से नुकसान देह है तो उसमें बदलाव या रद्द किया जा सकता है। जिसके आगे सरकार भी कुछ नहीं कर सकती है।
  • सुप्रीम कोर्ट को एक तरह से संविधान का रक्षक भी कहा जाता है। ऐसे में जब भी कभी हमारे संविधान का किसी तरह से उल्‍लंघन होता है। तो सुप्रीम कोर्ट उस पर स्वत: ही संज्ञान ले लेता है। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कई बार किया भी है।
  • सुप्रीम कोर्ट से कोई भी जज जब कभी रिटायर होता है। तो वह इसके बाद देश के किसी भी अदालत में कार्य नहीं कर सकता है। इसके पीछे माना जाता है कि इससे न्‍याय प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख शक्तियां

  • सुप्रीम कोर्ट के पास यह शक्ति है कि वह देश के किसी भी अदालत के फैसले को पलट सकता है। यदि उसे लगता है‍ कि उसका निर्णय सही नहीं है। ऐसा उसने अनेकों बार किया है।
  • सुप्रीम कोर्ट दो राज्‍यों या राज्‍य और केंद्र सरकार के बीच जब कोई विवाद हो जाए तो उसकी सुनवाई कर सकता है। साथ ही उसका निर्णय मानने के लिए दोनों पक्ष बाध्‍य होंगे।
  • अनुच्‍छेद 143 के मुताबिक जब राष्‍ट्रपति को कभी लगता है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेनी जरूरी है। तो वह उस मामले को सुप्रीम कोर्ट में जज के पास भेज सकता है। यहां खास बात ये है कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट सलाह देने के ना तो बाध्‍य है ना ही राष्‍ट्रपति सुप्रीम कोर्ट की सलाह मानने के लिए बाध्‍य है। हालांकि, ऐसा मौका शायद ही कभी आया हो जब राष्‍ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी हो।
  • कई आयोग के अध्‍यक्ष और सदस्‍य की नियुक्ति सीधे राष्‍ट्रपति के द्वारा की जाती है। ऐेसे में यदि कभी उन्‍हें किसी तरह के आरोप के चलते कार्यकाल के बीच में ही पदमुक्‍त करने की बात आती है। तो यहा जरूरी हो जाता है कि पहले सुप्रीम कोर्ट उन आरोपों की पहले जांच करेगा। इसके बाद यदि वो सही पाए जाते हैं तभी उसे पदमुक्त किया जाएगा।
  • जब भी कभी संविधान को समझने में कठिनाई हो तो ऐसे समय में सुप्रीम कोर्ट की संविधान की व्‍याख्‍या करता है। साथ ही उसकी व्याख्‍या सर्वमान्‍य होती है।
  • सुप्रीम कोर्ट के पास यह शक्ति है कि यदि उसे लगे कि कोई मामला किसी उच्‍च न्‍यायालय में है और उस पर सुनवाई करनी जरूरी है तो वह उसे अपने पास भी मंगा सकता है। साथ ही यदि सुप्रीम कोर्ट चाहे तो किसी दूसरे न्‍यायालय में भी भेज सकता है।
  • राष्‍ट्रपति या उपराष्‍ट्रपति के चुनाव में कभी किसी तरह का यदि विवाद उत्पन्न हो जाए तो इस तरह के मामले की सुनवाई केवल सुप्रीम कोर्ट में ही की जा सकती है। साथ ही ऐसे मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट भी सीमित समय में करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट के CJI को हटाने का अधिकार केवल संसद के पास है। वो भी महाभियोग के द्वारा। अच्‍छी बात ये है कि अब तक कुल एक ही संसद में सुप्रीम कोर्ट के जज के ऊपर महाभियोग चलाया गया है। जो‍ कि बहुमत के चलते पास नहीं हुआ था।
  • यदि सुप्रीम कोर्ट में जजों को बढ़ाने की बात करें तो यहां सुप्रीम कोर्ट के हाथ बंधे हुए हैं। इस कार्य को केवल संसद ही कर सकती है। जब उसे लगे कि अब न्‍यायधीशों की संख्‍या बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा पहले कई बार किया जा चुका है।
  • सुप्रीम कोर्ट हो या देश की कोई भी अदालत हो कोई भी नागरिक चाहे वो कितने भी बड़े पद पर हो वह अदालत के फैसले का अपमान नहीं कर सकता है। यह मानहानि कानून के तहत एक अपराध माना जाता है।

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सुप्रीम कोर्ट के कुछ एतिहासिक फैसले

आइए अब हम आपको बताते हैं कि अब त‍क सुप्रीम कोर्ट ने वो कौन से फैसले दिए हैं जिन्‍हें हमेशा याद किया जाता है। इस तरह के फैसलों की लिस्‍ट बहुत लंबी है इसलिए यहां केवल हम कुछ मामलों का जिक्र कर रहे हैं।

  • वर्ष 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्‍पष्‍ट कर दिया था कि भारत की संविधान की सर्वोच्‍च है। ऐेसे में संसद उसके अंदर ऐसा कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकती है। जो कि उसके मूल ढांचे में किसी तरह का परिवर्तन करे।
  • साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही ईवीएम मशीन में NOTA का बटन शामिल किया गया था। इसका प्रयेाग कोई वोटर तब कर सकता था। जब उसे किसी भी पार्टी या नेता को वोट ना देना हो। खास बात ये है कि NOTA की भी चुनाव आयोग की तरफ से गिनती की जाती है। परन्‍तु इसका कोई विशेष महत्‍व नहीं होता है।
  • एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार कार्ड किसी भी तरह से निजता का उल्‍लंघन नहीं करता है। इसलिए इसे बैंक और सरकारी योजनाओं में अनिवार्य रूप से दिया जाना होगा। तभी सरकारी योजनाओं का लाभ लिया जा सकता है।
  • लंबे समय से चले आ रहे राम मंदिर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला देकर इसे विराम दे दिया। इस फैसले से जुड़ी खास बात ये है कि माना जाता था कि इस पर फैसला करना कभी संभव नहीं हो पाएगा। परन्‍तु सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्य को करके दिखाया था।
  • हाल ही में पारित कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने दो साल तक रोक लगाने का फैसला दिया था। जो‍िकि बेहद विवाद में रहा था। हालांकि, वर्तमान में तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने निरस्‍त कर दिया है।

नमस्कार दोस्तों, मैं रवि "आल इन हिन्दी" का Founder हूँ. मैं एक Economics Graduate हूँ। कहते है ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता कुछ इसी सोच के साथ मै अपना सारा ज्ञान "आल इन हिन्दी" द्वारा आपके साथ बाँट रहा हूँ। और कोशिश कर रहा हूँ कि आपको भी इससे सही और सटीक ज्ञान प्राप्त हो सकें।

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